Monday, April 20, 2020

जन्तु और पौधे ( ctet पाठ्यक्रम पर आधारित )

जन्तु और पौधे ( ctet पाठ्यक्रम पर आधारित )

सजीवों को दो भागो में बिभक्त किया गया है।
पादप जगत
जंतु जगत
सूक्ष्म जीव जग

कालांतर में हिबेटकर ने सजीवों को 5 प्रमुख भागो मे बिभाजित किया है जो निम्नलिखित है -

मोनेरा    -  जीवाणुओ का अध्ययन
प्रॉटिस्टा   - अमीबा तथा पैरमिसियम का अध्ययन
कवक  - मशरूम तथा फफूंद  अध्ययन
पादप जगत - पौधो का  अध्ययन
जंतु जगत   -  जन्तुओ का अध्ययन

पौधे -  पौधे plants पर्याबरण एवं पारिस्थिकी तंत्र  के लिए अति आवश्यक होते है  पारिस्थिकी तंत्र  ऊर्जा प्रदान कराते है ,इसके अलावा मनुष्य तथा जीव जन्तुओ भी  भोजन के लिए अधिकांश भाग पेड़ पौधो से ही प्राप्त करते है।

पौधे के  भाग एवं उनकी  भूमिका
पौधो के निम्नलिखित भाग होते है -

जड़
पौधो का वह भाग जो जमीन के अंदर होता है , जड़ root  दो प्रकार की  होती है,
 मूसला जड़ - मटर ,चना , मूली , गाजर आदि।
  झकड़ा जड़- गेहूँ , घास , गन्ना , मक्का आदि.
जड़ का महत्व - यह पौदो को जमीन से पकड़ के रखता है, तथा जमीन से जल तथा खनिज पदार्थ  अवशोषित कर के तना के द्वारा पौधो के बिभिन्न भागों में पहुँचाता है।

तना
यह पौधो का वह भाग जो भूमि के ऊपर रहता है।  तना हरे या भूरे रंग का होता है , तने से ही टहनियाँ एवं पत्तिया निकलती है।
तना का महत्व - यह जड़ द्वारा अवशोषित जल एवं खनिज पदार्थ को पत्ती तथा अन्य भागों में पहुँचाती है।
आलू , अदरख , जैसे कुछ तने ऐसे भी होते है जो जमीन के अंदर होते है और हम उन्हें खाते है। 

पत्ती
पौधो की पत्तियां , तनो व टहनियों के सहारे निकलती है ,पत्तिया मुख्य रूप से हरे रंग के होते जबकि कुछ लाल , पीले भी होते है।
पत्तियों के महत्व- पत्तियां सूर्य की रौशनी में जल और कार्बोन डाय ऑक्साइड की सहायता से प्रकाश संश्लेषण करती है , जिससे पौधो का भोजन का भोजन निर्माण होती है।

फूल
नए पौधो के विकास में फूल सहायता करते है , क्योंकि फूल पौधा का प्रजनन अंग होते है , फूलो की पंखुडिया रंगीन होती है , फुलो के कई भाग होते है , जैसे बाह्यदल , पंखुडिया , स्त्रीकेसर एवं पुंकेशर।
सबसे बड़ा फूल रफ्लेसिया और सबसे छोटा फूल वूल्फिया है।
फूलो का महत्व -पौधो में परागण की प्रक्रिया फूलो द्वारा ही सम्पन्न होती है , इसी प्रक्रिया द्वारा पौधो में प्रजनन होती है , परागण की प्रक्रिया कई प्रकार से होती है , जैसे वायु द्वारा , कीटो द्वारा , जल द्वारा ,पक्षियों द्वारा , जन्तुओ द्वारा आदि।
कुछ फूलों को खाया भी जाता है  तथा कुछ से इत्र बनाया जाता है।

फल
फल का निर्माण फूलो के अंडाशय से होता है , सामान्यतः फूलो के अंदर बीज होते है , फल खट्टे या मीठे होते है।पौधो का वह भाग जिसको खाने के लिए उपयोग होता है।
बीज
फूलो में पाए जानेवाले बीजाण्ड बीज बनाते है , बीजो के अंदर भ्रूण होता है , जो नमी एवं वायु की उपस्थिति में अंकुरित होता है। .
बीज का महत्व - कई प्रकार के बीजो का खाया जाता है ,कुछ बीज से तेल बनाया जाता है , बीजो से नए पौधे का जन्म होता है।

पौधो के प्रकार
भौतिक विशेसता अथवा आकार के आधार पर पौधो को निम्नलिखित वर्गीकरण है।

शाक Herbs    ये आकर में बहुत छोटे होते है , इनके तने हरे रंग के होते है , जो बहुत ही कोमल होते है , जैसे - धनिया , मेथी , पालक आदि।

झाड़ी - shurbs इनका आकार शाक से बड़ा होता है , इनका तना मोटा व कठोर होता है , जिसमे कई सारे शाखा इनके तने के आधार से निकलती है , जैसे गुलाब , गुड़हल , निम्बू आदि।



  










    

Sunday, April 19, 2020

शब्द भेद

शब्द भेद :-
शब्द - वर्णो के सार्थक  को शब्द कहते है।
शब्द भेद -  प्रयोग  आधार पर , अर्थ के आधार पर , व्युतपत्ति के आधार पर बनावट के आधार पर शब्दों को वर्गीकृत किया  गया है।

अर्थ के आधार पर शब्दों को दो भागो में बांटा गया है।
1 .सार्थक शब्द                       2 . निरर्थक शब्द
1 सार्थक शब्द - जिन शब्दों का कोई अर्थ निकलता हो सार्थक शब्द कहते है , जैसे - रोटी , कान आदि
2 . निरर्थक शब्द - जिन शब्दों का कोई अर्थ नहीं निकलता हो , निरर्थक शब्द कहते है , जैसे - कदाप , नपा आदि।

व्युतपत्ति के आधार पर शब्दों के चार भागों में बांटा गया है।
१. तत्सम
२. तदभव
३. देशज
४. विदेशज

तत्सम - संस्कृत से आये हुए शब्द एवं उन्हें ज्यों का त्यों वैसा ही प्रयोग करते है , तत्सम शब्द कहलाता है.. जैसे - कवि , अग्नि , वायु , वत्स आदि।

तदभव - जो शब्द संस्कृत से लिया गया परन्तु उन्हें हिंदी में प्रयोग के समय अलग   कर के प्रयोग  जाता है , तदभव शब्द कहलाते है , जैसे मोर , बच्चा , फूल आदि।

देशज - वैसे शब्द जो हमारे देश से ही उत्तपत्ति हुई है , देशज शब्द कहलाते है , जैसे -लकड़ी , बाप , पेट आदि।
विदेशज - वैसे शब्द जिसकी उतपत्ति विदेश में हुई हो जो किसी विदेशी भाषा से आयी हो विदेशज शब्द  कहलाता है

बनावट के आधार पर इसके तीन भेद होते है।

रूढ़
यौगिक
योगरूढ़

रूढ़ - जिन शब्दों के सार्थक खण्ड नहीं हो सकते रूढ़ शब्द कहलाते है , जैसे- नाक , कान आदि।

यौगिक - वैसे शब्द जो दो  या दो से अधिक शब्दों से मिलकर बना होता है , जिन्हे खंडित करने से भी उसका सार्थक अर्थ निकलता है , यौगिक शब्द कहलाता है ,जैसे - पाठशाला , विघालय आदि।

योगरूढ़ -




Thursday, April 16, 2020

शिक्षक के गुण और दायित्व

शिक्षक के गुण और दायित्व :-
प्राचीन काल  से ही शिक्षक को समाज में सम्मानीय जगह देता आ रहा है , प्राचीन काल से  शिक्षकों को ईश्वर का सदृश्यिक रूप रूप माने जाता रहा है , 1986 के शिक्षा नीति में शिक्षक  को समाज का प्रधान  धुरी माना गया है। 
शिक्षा आयोग के अनुसार किसी  विद्यालय में पाठ्यक्रम ,  संरचना , विद्यालय संगठन ,  पठन सामग्री शिक्षण  पध्ढति तब तक कुछ भी लाभदायक नहीं  हो सकता जब तक हमारा शिक्षक योग्य और चरित्र वान नहीं  होगा। 
 किसी भी देश का सांस्कृतिक , सामाजिक स्तर देखना हो तो वहां के शिक्षक के स्थिति को देखना  होगा। 
अध्यापक किसी भी संस्कृति का  निर्माता होता है, साथ ही एक भावी नागरिक को  भी एक शिक्षक ही बना ता है। 
आदर्श शिक्षक के गुण :-

शिक्षक को राष्ट्र निर्माता , मनुष्य निर्माता शिक्षा पध्ढति  की आधारशिला , एवं समाज को गति प्रदान करनेवाला होता है , अतः इतना सारा कर्तव्य एवं दायित्व एक शिक्षक  को दिया गया है , अतः एक शिक्षक में निम्नलिखित गुणो का उल्लेख किया गया है :-

जो संयुक्त राज्य अमेरिका में डॉ एफ एल फ्लेप द्वारा 1913 में उल्लेख किया गया है। 

1  प्रभावशाली  व्यक्तित्व 
2. व्यैक्तिव आकृति 
3 . आशावादिता 
4 . संयम 
५. उत्साह 
6 . मानसिकता 
7.    शुभ चिंतक 
8 . सहानुभूति 
9 . जीवन शक्ति 
10 . विद्वता 
11 . नेतृत्व की क्षमता 
12 . अच्छा स्वर आवाज 
13 . विनोदप्रियता 
14 . छात्रों के प्रति मैत्रीपूर्ण दृष्टिकोण 
15 . बाल मनोविज्ञान का ज्ञाता 
16 . बच्चो की जन्मजात शक्तियों के विकाश में उनकी सहायता करना 
17 . छात्रों के चरित्र निर्माण एवं उनके नैतिक विकास  में सहायता करना 
18 . अच्छे विचारो को स्वीकार करने में सहायक 
19 . छात्रों में राष्ट्रीय सद्भावना और राष्ट्रीय एकता को बढ़ावा देना एक आदर्श शिक्षक का गुण होना चाहिए 












Tuesday, April 14, 2020

वर्ण किसे कहते है ?

वर्ण किसे कहते है ? 

वर्ण :- वर्ण उस मूल ध्वनि को कहते है , जिसके खंड या टुकड़े नहीं किये जा सकते है। 
जैसे :- क , ख , च , त  , अ  आदि। 

    वर्णो के भेद :-

वर्णो के मुख्यतः दो भेद है।    1. स्वर वर्ण   2. व्यंजन वर्ण 

स्वर वर्ण :- वैसे वर्ण जो किसी अन्य वर्णो के सहायता के बिना ही उच्चारण किया जा सकता है , स्वर वर्ण कहते है। जैसे :- अ , आ , इ , ई , उ , ऊ , ए , ऐ , ओ , औ  आदि।
जिसका उच्चारण मूलतः कंठ , तालु से होता है।

ये दो प्रकार  होते है :-
(क) मूल स्वर -    अ , इ  ,उ , ओ , आदि।
 (ख) संयुक्त स्वर -ऐ ( अ + ए )  , औ ( अ + ओ )

मूल स्वर के दो भेद होते है। 

ह्रस्व स्वर - जिनके उच्चारण में कम समय लगता है , जैसे अ , इ , उ आदि।

दीर्घ स्वर - वैसे स्वर जिनके उच्चारण में दुगुना समय लगता है , दीर्घ स्वर कहलाता है।
जैसे :- आ , ई , ऊ , ऐ , औ आदि।

हिंदी के लिए प्रयुक्त देवनागरी  लिपी में कूल 52 वर्ण होते है , जिसमे ११ मूल स्वर , 33 मूल व्यंजन 2 उत्क्षित व्यंजन 2 अयोगवाह और 4 संयुक्ताक्षर व्यंजन होते है। 


व्यंजन वर्ण - वैसे वर्ण जिनके उच्चारण में स्वर की सहयता  ली जाती है , जैसे क , ख , च , ज आदि 

इसके तीन भेद होते है -

1 . स्पर्श व्यंजन - स्पर्श व्यंजन में कवर्ग ,  चवर्ग , टवर्ग , तवर्ग और  पवर्ग  होते है।

2 . अंतस्थ व्यंजन - इसमें चार व्यंजन य , र , ल ,व होते है।

3 . उष्म व्यंजन - इसमें भी चार व्यंजन होते है , श , ष , स , और ह होते है।

मात्राएँ - व्यंजन वर्णो के लिए उच्चारण हेतु जिन स्वरमूलक चिन्हो का प्रयोग होता , मात्राएँ कहते है , जो व्यंजनों में लगाकर सार्थक शब्द बनाये जाते है।

अन्य व्यंजन :-
 अनुस्वार-  अं           विसर्ग- ाः           संयुक्त व्यंजन  - दो व्यंजनों को जोड़कर बने वर्ण संयुक्त वर्ण कहते है जैसे :- क + ष = क्ष    
 अनुतान व्यंजन - जिन वर्णो के उच्चारण में सूर अथवा तान के पीछे ध्वनि या सुर होता है।

     स्थान                          वर्ण                                                         नाम 
    कंठ                    अ , आ , क , ख , ग , घ , आदि                       कण्ठ्य वर्ण
   तालु                    इ , ई , च , छ , ज , झ , य , श आदि              तालव्य वर्ण
  मूर्धा                   ऋ , ड , ठ , ड , ढ , ण , र , ष                        मूर्धान्य वर्ण
  दंत                     त , थ , द , ध , न , ल , स                               दंत वर्ण
 ओष्ठ                   ऊ , उ , प , फ , ब , भ , म                           ओष्ठ्य वर्ण
 कंठतालु                ए , ऐ                                                        कंठताल्वय
 कंठोष्ठ                  ओ , औ                                                      कंठस्त
 दन्तोस्ठ                   व                                                             दंतोष्ट
























Monday, April 13, 2020

व्याकरण किसे कहते है ? इसका महत्व के बारे बताये |

व्याकरण किसे कहते है ? इसका महत्व के बारे  बताये | 

व्याकरण -व्याकरण उस शास्त्र को कहा जाता है , जिसमे किसी  भाषा के शुद्ध करने वाले नियम बताते है |
किसि भी भाषा के अंग प्रत्यंग का विश्लेषण तथा बिवेचना करे व्याकरण कहलाता है |

व्याकरण जिसके द्वारा किसी भाषा को शुद्ध  रूप में बोलने , लिखने या पढ़ने का निश्चित नियम बताने वाले बिधा को व्याकरण कहते है |

व्याकरण पढ़ना महत्वपूर्ण क्यों है ?
1 . सटीक नियम :- व्याकरण एक ऐसा बिधा जो हमे सटीक नियम बताता है |

2 . विश्लेषन  कर पाना :- जब हम किसी भी विषय की पूरी जानकारी रखते ही तब ही हम उसका पूरा विश्लेषण कर पाते है , और व्याकरण ही हमे किसी भी भाषा की पूरी जानकारी व्याकरण ही देता है |

३. शब्द अनुशासन :- व्याकरण के  ज्ञान  से ही हम शब्दों को अनुशासित रख पाते है व्याकरण के द्वारा ही हम शब्दो का गठन , लिंग निणय  आ दि  अन्य नियम कर पाते है, व्याकरण हमारा शब्द प्रयोग को निर्देशित करता है , व्याकरण हमे सही जानकारी से परिचय करा ता है |


हर भाषा का अपना एक व्याकरण होता है , जिसमे हिंदी , अंग्रेजी संस्कृत आदि शामिल है | 

जानकारों के अनुसार हिंदी व्याकरण का सबसे पुराना ग्रंथ बनारस के दामोदर पंडित दवारा रचित द्विभाषिक ग्रंथ   उक्ति - -वक्ती प्रकरण  को मन माना जाता है | 


1920 ई.में पंडित कामता प्रसाद द्वारा लिखित प्रथम  बार एक  प्रामाणिक एवं  आदर्श  हिंदी  व्याकरण नागरी प्रचारिणी सभा काशी ने प्रकाशित किया। 

स्वंतंत्र भारत  जब भारत में राष्ट्रभाषा के  रूप में हिंदी को लिया गया उसके पश्चात कई महान विद्वान ने व्याकरण के अनेक पुस्तकों को रचना करवा कर  प्रकाशित कराया। 













Sunday, April 12, 2020

साक्षरता

 साक्षरता -  प्राचीन  काल से मानव जीवन के उत्तरोत्तर विकाश में शिक्षा का महत्वपूर्ण स्थान रहा है | 1991 के जनगणना के अनुसार भारत की साक्षरता दर 52 . 11 % थी , जबकि 2011 में बढ़कर 73 % हो गयी | जबकि 1951 में मात्र 18 . 33 % थी | शिक्षा के महत्व को देखते हुए 1935 में कई केंद्रीय शैक्षिक परामर्श बोर्ड की गठन की गयी जिसमे 1986 की राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1992 में राष्ट्रीय संसोधित नीति आदि बनाये गए |   1976 के पहले शिक्षा पूरी तरह से राज्यों के अधिकार क्षेत्र में थी लेकिन बाद में सविधान संशोधन  कर के इसे समबर्ती सूचि में डाल के शिक्षा केंद्र और राज्य दोनों की साझी जिम्मेदारी बन गयी | शिक्षा की  ढांचे के फैसले अक्सर राज्य जबकि इसकी गुणवत्ता को ख्याल केंद्र  सरकार  लगी 86 वे सविधान संशोधन अधिनियम २००२ द्वारा सविधान के भाग 3 में अनुच्छेद 21 a में जोड़ा गया जिसमे 6 - 14 वर्ष की आयु के सभी बच्चो को अनिवार्य शिक्षा का प्रावधान करता है | जिसमे निःशुल्क अनिवार्य शिक्षा का प्रावधान  गया है , सभी के लिए शिक्षा का लक्ष्य प्राप्त करने  करने के लिए अनिवार्य रूप से भारत में इसे 1 अप्रैल २०१० में लागू कराया गया |

सरकारी शैक्षिक कार्यक्रम -

1 . जिला प्राथमिक शिक्षा कार्यक्रम - 1986 के शिक्षा नीति और 1992 में  किये गए सशोधन के अनुरूप सबको प्राथमिक शिक्षा उपलब्ब्ध करने हेतु जिला प्राथमिक शिक्षा कार्यक्रम  लागू किया गया | जो सात  के राज्यों के 42 जिलों में  किया गया जिसमे मध्यप्रदेश , असम , कर्नाटक , हरियाणा , महाराष्ट्र , तमिलनाडु और  केरल फिर अन्य अन्य राज्यों में बाद में  लागु किया जा  रहा है |

2 . व्यब्सायिक शिक्षा - 1986 की राष्ट्रीय शिक्षा नीति में माध्यमिक स्तर पर व्यावसायिक शिक्षा को प्राथमिकता दी गयी  | जिसमे 1992 के राष्ट्रीय  शिक्षा नीति में संशोधन कर के 10 + 2  स्तर के  विद्यार्थियों को व्यब्सयिक शिक्षा में लाने का लक्ष्य रखा गया , जिसमे छः प्रमुख क्षेत्र में करीब 150 व्यब्सयिक पाठ्यक्रम  शुरू किये गए जिसमे कृषि , व्यापार , वाणिज्य , इंजीनियरींग , टेक्नोलॉजी , स्वास्थ्य, औषधी , गृहविज्ञान  मानविकी  शामिल है |

 3 . केंद्रीय विद्यालय :- केंद्रीय विद्या लय  की स्थापना की योजना भारत सरकार द्वारा  लायी गयी और 1963 में शिक्षा मंत्रालय  द्वारा राज्य मंत्रालय द्वारा चलाये जा रहे 20 रेजिमेंटल स्कूलों  को अपने नियंत्रण में लिया और उसे केंद्रीय विद्यालयों   परिवर्तित किया गया |  बाद में शिक्षा मंत्रालय ने इसे स्वायत्तशाशी संस्था के रूप में स्थापित किया गया आज पुरे देश केंद्रीय विद्यालयों की संख्या 1230 है |

4. राष्ट्रीय खुला विद्यालय :- राष्ट्रीय खुला विद्यालय की स्थापना स्वायत्त संगठन द्वारा नवंबर 1989 में किया गया जिसका उद्देश्य माध्यमिक स्तर की शिक्षा उपलब्ध करना होता है , जो किसी कारणवश विद्यालय छोड़ देते है या औपचारिक रूप से विद्यालयो  में नामांकण नहीं करा पाते है , जिसके प्रमाण पत्र उच्च शिक्षा के लिए मान्यता प्राप्त है |

5 . नवोदय विद्यालय :- भारत सरकार 1986 -86 में प्रत्येक जिले में एक नवोदय आवासीय विद्यालय पूर्णतः उत्तम शिक्षा जिसमे ग्रामीण प्रतिभाशाली बच्चो को आधुनिक शिक्षा उपलब्ध करता है |

6 . विश्वविद्यालयो  में उच्च शिक्षा :- विश्वविद्यालयों के शिक्षा के सम्बर्धन एवं समन्वयन और उच्च शिक्षा के स्तर को बनाये रखने के लिए 28 दिसंबर 1953 को भारतीय संसद में एक आयोग का गठन किया जो स्वायत्तशासी बैधानिक  निकाय बना दिया गया यह आयोग विश्व विद्यालयो , और महाविद्यालयों को राशि अनुदान के अलावा राज्य सरकार के चलनेवाली उच्च शिक्षा के आवश्यक कदम हेतु प्रेरित करती है |

1 नवंबर 2019 तक पुरे देश में   विश्वविद्यालयो  की संख्या इस प्रकार है --

          1 . केंद्रीय विश्वविद्यालय - 50
          2. डीम्ड   विश्वविद्यालय  - 126
          3 . राज्य   विश्वविद्यालय    - 404  
          4 . निजी  विश्वविद्यालय -340
                   कुल = 920



7 .इंदिरा गाँधी राष्ट्रीय मुक्त विधालय -   सितंबर 1985 में भारतीय संसद में इसकी स्थापना की गयी जिसका मुख्य उद्देशय दूरस्थ शिक्षा को बढ़ावा देना होता है और उच्च  शिक्षा को बढ़ावा देना है ,सबसे  पहले 1991 में दूरदर्शन में मुक्त विद्यालयों के कार्यक्रमों को प्रसारित करना शुरू किया था आज प्रमुख रूप से पुरे देश में निम्नलिखित मुक्त विद्यालय चल रहे है -- 
1 . बी. आर अम्बेडकर मुक्त विद्यालय ( हैदराबाद )
२. नालंदा विस्वविद्यालय ( बिहार )
3 . कोटा विश्वविद्यालय    ( राजस्थान )
४. यशवंत रॉ चौहान ( नासिक)
5. भोज मुक्त विश्वविद्यालय ( भोपाल )
6 . अम्बेडकर  विश्वविद्यालय( गुजरात )


             भारत में साक्षरता की स्थिति (  कुल जनसंख्या में )

                      जनगणना वर्ष            साक्षरता दर % में
                         1951                       18 . 33 %
                         1961                       28 . %
                         1971                       34 . 45 %
                         1981                        43 . 57 %
                        1991                         52 . 21 %
                         2001                        64 . 84 %
                         2011                         73 %
               पुरुष साक्षरता दर                80 . 9 %

              महिला साक्षरता दर               64 . 6 %

      सर्वाधिक साक्षरता दर वाला राज्य    94 % केरल

      न्यनतम साक्षरता वाला राज्य           64% बिहार 
     
                    (  आंकड़े 2011 के अनुसार )


















Saturday, April 11, 2020

संज्ञा किसे कहते है ?

संज्ञा किसी भी वस्तु , स्थान , व्यक्ति , जाति , समूह  या भाव  के नाम को संज्ञा कहते है |
जैसे- किताब , पटना महात्मा गाँधी , लड़का , हिमालय सोना , कुत्ता आदि |

संज्ञा के पांच भेद होते है :-
१. व्यक्तिबाचक संज्ञा 
२. जातिवाचक संज्ञा 
३.भाववाचक संज्ञा 
४. समूह वाचक संज्ञा 

१. व्यक्तिवाचक संज्ञा - जिस शब्द से किसी खास व्यक्ति , स्थान  का बोध होता है , उसे ब्यक्तिवाचक संज्ञा कहते है | जैसे जॉन , गंगा , दिल्ली , पटना , सूर्य आदि |

२. जातिवाचक संज्ञा - जिससे किसी  जाति  व्यक्तियो , स्थान ,  का बोध होता है , उसे जातिवाचक संज्ञा कहते है|  जैसे:- लड़का , लड़की , नदी , शहर , घोडा आदि |

३. भाववाचक संज्ञा- जिससे व्यक्ति का  वस्तु का गुण , भाव , दशा आदि का बोध होता   है  , भाव वाचक संज्ञा है|
 जैसे :- उंचा ई  , मिठास  , बुढ़ापा , सुंदरता आदि  | 

४. समूहवाचक संज्ञा - जिससे व्यक्तियों का या वस्तुओ का किसी समूह या समुदाय वर्ग  होता है , उसे समूहवाचक संज्ञा कहते है | जैसे :- सभा , दल , झुण्ड , गुच्छा , सेना आदि ||

५. द्रव्यवाचक संज्ञा - जिससे किसी धातु ,द्रव्य का बोध होता है , या जिसको हम नाप या तौल सकते है , द्रव्य वाचक संज्ञा कहते है | जैसे:- चांदी , दूध , मिटटी , तेल, कोयला  आदि |